संस्कृत का उज्जवल भविष्य
संस्कृत की साम्प्रतिक स्थिति यद्यपि उतनी दयनीय नहीं है तथापि यह हम नहीं कह सकते की स्थिति बहुत अच्छी है। संस्कृत को सर्वजनप्रिय बनाना समयसापेक्ष है तथा बहुविध प्रयासों की आवश्यकता है। ऐसा नहीं कि काम नहीं हो रहा है। लोग समर्पित भाव से इस पुण्य कर्म में लगे हुए हैं। फिर भी बहुत कुछ करने को बाकी है। संस्कृत को आगे बढाने के लिये पिछले बीस वर्षोंसे से हम कई प्रकार के कार्यक्रम बना रहे हैं । हमारा मानना है कि संस्कृत को आगे बढाने के लिये और जन जन तक पहुंचाने के लिये सर्वप्रथम प्रयास यह है कि हम संस्कृत की प्रसंगिकता के सम्बन्ध में लोगों को सचेतन बनायें। जबतक इस भाषा की प्रासङ्गिकता को लोग स्वीकर नहीं करते तबतक संस्कृत का प्रसार सहज नहीं हो पायेगा।
संस्कृत को अगर सही तरह से आगे बढ़ाना है तो इसे बच्चों के पास पहुंचाना आवश्यक है। प्रारम्भिक स्तर से ही बच्चे अगर संस्कृत पढ़ें तो बच्चों के आन्तर-विकास के साथ साथ संस्कृत का भी विकास होता जायेगा।(देखें — http://devabhasha.in/)
संस्कृत में बाल-साहित्य का नितान्त अभाव है। जो भी थोडा बहुत है वह बहुत ही कम है जो वास्तव में बाल साहित्य के रूप में स्वीकार किया जा सके। राष्ट्रिय स्तर पर इस क्षेत्र में कार्य को आगे बढ़ाने के लिये हमने वर्ष २०१४ को संस्कृत बालसाहित्य परिषद् की प्रतिष्ठा की है जिस परिषद् का उद्देश्य है संस्कृत में प्रकृष्ट बालसाहित्य निर्माण, समीक्षण, प्रचार व प्रसार। बाल साहित्य परिषद् के विविध कार्यक्रम में मुख्य है बाल साहित्य निर्माण। संस्कृत में अच्छे बालसाहित्यों का प्रकाशन परिषद का मुख्य लक्ष्य है। बालसाहित्य को लेकर चर्चागोष्ठी, कविसम्मेलन, साहित्यकार और समीक्षकों के प्रशिक्षणादि कार्यक्रम भी इस परिषद् का मुख्य कार्य का अंतर्गत है। इसके साथ साथ Sanskrit for Children नामक एक बहुत बड़े प्रकल्प पर काम चल रहा है जिसका उद्देश्य है बच्चों के लिये सर्जनात्मक शिक्षण सामग्री बनाना। इस में बच्चों के लिये animation movie, inspiring short films और अनेक प्रकार की शिक्षण सामग्रीं का निर्माण हो रहा है जिसके द्वारा संस्कृत को एक अभिनव रीति से तथा modern technology के प्रयोग से बच्चों के पास पहुंचाना है। (देखें -http://samskritabalasahityaparishad.org.in)
संस्कृत का प्रचार और प्रसार के लिये विश्व का सबसे पहला २४/७ संस्कृत रेडियो “दिव्यवाणी” का प्रारम्भ हमने किया है जिसके माध्यम से चौबीस घण्टे संस्कृत में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। इसका संचालन पिछले ७ वर्ष से हम अकेले ही कर रहे हैं और आज देश-विदेश के लाखों लोग इस रेडियो के माध्यम से संस्कृत में विभिन्न प्रकार का कार्यक्रम सुन पाते हैं। इस रेडियो को अपने स्मार्ट फोन में Tune in Radio नामक Apps के माध्यमसे सुना जा सकता है अथवा google search में divyavani Sanskrit radio लिख कर अपने browser से सुना जा सकता है। (सुनिए यहाँ — http://radio.garden/listen/divyavani/lX2VE9qX )
इण्टरनेट के माध्यम से जो भी किया जा सकता है यह विषय अपने-आप में बहुत ही व्यापक है। क्या हो रहा है इसका ज्ञान होना तो महत्त्वपूर्ण है ही पर ज्ञान के साथ-साथ उपलब्ध सामग्रीओं का समुचित उपयोग करने से ही उन सामग्रीं की सार्थकता है। संस्कृत में कई प्रकार के शब्दकोश से लेकर संस्कृत भाषा का अध्ययन, व्याकरण का अध्ययन, शास्त्रों का अध्ययन, इन सारे विषयों को अत्याधुनिक रीति से इण्टरनेट के माध्यम से जिस प्रकार दिया जा रहा है वह अद्भुत ही नहीं बल्कि प्रायोगिक और व्यावहारिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। उदाहरणस्वरूप, आज इण्टरनेट से परिचित कोई भी संस्कृत का छात्र, अध्यापक या संस्कृत में रुचि रखनेवाला व्यक्ति, अपने घर बैठे ही बड़े बड़े ग्रन्थालयों में उपलब्ध पुस्तकों बारे में केवल जान ही नहीं सकता बल्कि उन पुस्तकों का अध्ययन भी अपने घर बैठे कर सकता है। बड़े बड़े शब्दकोशों को हमेशा साथ मे रखना तो सम्भव नहीं परन्तु आजकल तकनीक द्वारा अपने स्मार्ट फोन पर भी रख सकते हैं और इन का उपयोग कहीं भी कर सकते हैं। किन्तु दुःख की बात यह है कि आज संस्कृत से जुड़े हुए बहुत ही कम लोग हैं जिनको इनका पता है। मेरे विचार से इस विषय में संस्कृत जगत् में जागरण की आवश्यकता है।
कम्प्यूटर के लिये संस्कृत कितना उपयोगी है इस विषय पर संस्कृत और कम्प्यूटर के क्षेत्र में काम करने वाले बड़े बड़े गवेषक और वैज्ञानिक भी स्पष्ट रूप से बता नहीं पाते हैं। पर कम्प्यूटर के लिये संस्कृत कितना उपयोगी है इससे अधिक महत्त्वपूर्ण जो बात है वह है संस्कृत के लिये कम्प्यूटर की उपयोगिता। आज कम्प्यूटर विज्ञान के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्त्वों को अपना कर संस्कृत का प्रचार व प्रसार तीव्रता के साथ बढाया जा सकता है। इस विषय में संगोष्ठीयों में चर्चायें होती रहती हैं पर यह आवश्यक है कि इस काम को सारे विश्वविद्यालय, महाविद्यालय और विद्यालय तक फैला जाय।
कुछ वर्ष पहले पुस्तकों का digitisation जितना कठिन काम था वह आजकल बहुत sophisticated OCR software आने के बाद आसान हो गया है॥। पहले यह होता था कि पुस्तकों का स्कैन किया हुआ प्रतिलिपि PDF के रूप में उपलब्ध होता था या तो उसका ITX उपलब्ध कराना है तो किसी भी पुस्तक को एक एक करके टङ्कित करना पडता था। आजकल संस्कृत के लिये विशेष OCR द्वारा digitisation का काम बहुत ही आसान हो गया है। इस software के माध्यम से किसी भी संस्कृत पुस्तक को स्कैन करके उसका editable file बनाया जा सकता है। Digitisation के क्षेत्र में यह अपने-आप में एक बहुत बड़ी सफलता है। आगे चलकर संस्कृत के लिये speech to text program भी जब बन जायेगा तब यह काम और आसान हो जायगा। (देखें — https://vmlt.in/)
मेरे विचार से संस्कृत को तकनिकी के साथ जोड़ कर अधिकतर बच्चों और युवकों के पास पहुंचाना है। अलग अलग उम्रके बच्चों का या युवाओं के मनोविज्ञान को अच्छी तरह जान कर उस के अनुकूल शिक्षण सामग्रियां बनाना और साथ ही साथ उच्चकोटि का प्रेरणात्मक साहित्य निर्माण करना बहुत आवश्यक है। अच्छे शिक्षकों का निर्माण करना, संस्कृत को संस्कृत के माध्यम से पढ़ाना, संस्कृत को technology के साथ जोड़ना, संस्कृत में अच्छी सामग्रियों का निर्माण, उच्चकोटि का साहित्य निर्माण, अनेक प्रकार के व्यावहरिक कोशों का निर्माण, आदि अनेक दिशा में संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिये हम सब को काम करना पड़ेगा। संस्कृत का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है किन्तु उस उज्ज्वल भविष्य को साकार करने के लिये हम सब को मिलकर अथक परिश्रम करना पड़ेगा। तब जाके संस्कृत का उत्थान हो सकता है।
-डॉ सम्पदानन्द मिश्र